शून्य एक ऐस नाट्य समूह है जो बेबाक़ी से अपनी बात को कहता है l हाल ही में शून्य द्वारा ब्रेष्ट की कविताओं पर बात की जा रही है l इसी कड़ी में आज शून्य के एक महत्वपूर्ण स्दस्त्य आदित्य चौधरी का लेख प्रकाशित करते हमें अत्यंत हर्ष हो रहा है l
ब्रेख्त की कविताओं पर विशेष : आदित्य चौधरी
विश्व के एक कोरोना के चलते जब पूरा विश्व रुक गया था, तब लोगों ने प्रयास किया अपने कार्यों को निरंतर करते रहने के नये तरीके खोजने का। ऐसे वक्त में, समाज के विभिन्न वर्गों की तरह कलाकारों का ने भी अपनी कलाओं को अपनी-अपनी तरह से साधा। ऐसे ही कुछ कलाकारों का समूह है शून्य नाट्य दल। तालाबंदी के समय में शून्य ने शुरू किया यूट्यूब पर अपना पॉडकास्ट। इसी पाॅडकास्ट की एक कड़ी है ब्रेष्ट की कविताएँ।
बर्टोल्ट ब्रेष्ट (1898-1956) जर्मनी के एक मशहूर नाटककार रहे। उनके जीवनकाल में जो परिस्थितियाँ रही, उनसे उपजे उनके नाटकों क विषय जिनका न केवल जर्मनी परंतु विश्व भर के नाटक इतिहास में राजनीतिक विरोध के मुद्दे को उठाने में महत्वपूर्ण योगदान है। नाटकों से कुछ कम चर्चित परंतु शायद उनसे ज्यादाा सटीक साबित हुई उनकी कविताएँ।
कुछ ऐसी ही कविताओं का हिंदी अनुवाद आवाज़ के माध्यम से प्रस्तुत किया शून्य के कुछ कलाकारों ने। महज़ दो- चार पंक्तियों में लिखी ये कविताएँ बयान करती हैं दो विश्व युद्धों से पीडित उन समाजों की भयावह स्थिति को, मानव जीवन और मौलिक अधिकारों की दुर्गति को। साथ ही साथ ये आज की पीढी को साफ़- सुथरे शब्दों में सत्ता के कर्तव्यों और आडंबरों के प्रति सचेत करती है।
दोस्त, देवदार, दीवार पर खड़िया से लिखा था, जब कूच हो रहा होता है, हर चीज़ बदलती है, जैसी ब्रेष्ट की कविताओं के माध्यम से शून्य का प्रयास है लोगों को हकीकत से आगाह कराना।
इन कविताओं की प्रस्तुति का सबसे अहम पक्ष है इनका साफ़ लहजा। दो भिन्न समाज, दो विपरीत समय पर कुछ मिलती- जुलती परिस्थितियों को दर्शाती सीधी दमदार पंक्तियों का वाचन उतना सीधा नहीं जान पड़ता जितना कि ये पंक्तियाँ ख़ुद हैं। पॉडकास्ट में हिंदी- भाषी कवियों की कविताओं और ब्रेष्ट की कविताओं के हिंदी अनुवाद के वाचन में आप खासा अंतर पहचान सकेंगे। इसे समझा जा सकता है ब्रेष्ट की theory of alienation के माध्यम से। जहाँ मूल रूप से हिंदी में लिखी कविताओं में भाव हावी हैं, वहां ब्रेष्ट की कविताएं भावों से परे खड़े हो कर हमें हक़ीक़त से रुबरु करती हैं। दुखद से दुखद परिस्थितियों से गुज़र कर, कई भावों को महसूस कर, उनसे अलग हो कर सीधे शब्दों में सच कहने दृढ़ता है ब्रेष्ट की कविताओं में। और यही दृढ़ता और सच झलकता है शून्य के कलाकारों की प्रस्तुति में। भावों से हट कर कहा गया सत्य, सत्य को समझने वालों के सामने कितने ही भाव ला खड़े कर देता है। यह है ब्रेष्ट की कविताओं की ताकत।
इस वाचन में चार चांद लगाने का काम करता है मयंक भैया का संयोजन। संगीत और ध्वनियों का चुनाव, जो निर्भर करता है वाचक की आवाज़ पर, कविता के मूल अर्थ पर और सुनने वालों के दिल में हरकत हो इस सोच पर। ब्रेष्ट की कविताओं में संगीत- संयोजन इतना प्रभावशाली है कि यह कहना गलत नहीं होगा कि आधा काम वाचक ने किया और आधा उन संगीत- ध्वनियों ने। उनका संगीत न तो वाचन में बाधा बनता है और न ही उसकी बैसाखी। वह तो काम करता है भूमिका का, माहौल बनाने का, सुनने वालों का ध्यान आकर्षित कर वाचक को मंच प्रदान करने का।
आखिर में बस इतना ही कि शून्य का यह प्रयास काबिले तारीफ़ है और आज के दौर में बेहद अहम भी।
आदित्य चौधरी
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