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इस शहर जिसे कहते हैं दिल्ली - में एक दरवेश रहता था : मिर्ज़ा ग़ालिब

एक तड़प जो नाटक के रूप में साकार हुई । तड़प एक मिले -जुले अदब …गंग -जमुनी रवायत को झोली में भर लेने की उसके रीतने से पहले …मिर्ज़ा मेरे मिर्ज़ा बाबा मेरी उस ज़मीन के शायर जहां मैं जन्मी …एक ऐसे क़लमकार जो ताउम्र सिर्फ़ इंसानियत को बचाने की कोशिश में लगे रहे । इस नाटक को जब देश के बड़े साहित्यकार और मेरे प्रिय नाटककार असग़र जी ने पढ़ा और उनका आशीर्वाद जो मिला तो बस फिर क्या …और क्या चाहिए …साथ ही मेरे नाट्य गुरु भानु सर की छाओं और उनसे जो संवाद हुआ उन्होंने जब नाटक पढ़ा तो मन तृप्त हो गया …पूजनीय गौतम सर का आशीर्वाद बरसा …

मेरी दीदी और प्यारी डॉ निशा नाग दीदी …जो स्वयं एक बड़ी साहित्यकार हैं के हाथों किताब का विमोचन हुआ ..,उनके शब्द से बड़ा आशीर्वाद और क्या हो सकता है । मेरे पाँच सौ पुराने चाँदनी चौक हवेली हैदर कुली के घर में रहे बड़ो से जो समझा जाना और ख़ुद जो महसूस किया ..उसी से बनी ये रचना - इस शहर जिसे कहते हैं दिल्ली में एक दरवेश रहता था … संजना बुक्स से मेरा पहला पुस्तक रूप में प्रकाशित नाटक - “इस शहर जिसे कहते हैं दिल्ली में एक दरवेश रहता था “ दरवेश - मिर्ज़ा ग़ालिब

नाटक वहाँ से शुरू होता है जहां तक आते आते और लेखक अंत करते हैं । ग़ालिब जो बरसों बरस मेरे मन में रहे जैसे उन्हें देखा जैसे उनसे बातचीत हुई ..गुलज़ार जहां अंत करते हैं वहाँ से ये शुरू होता है ..”दस्तम्बू”पर विशेष बात .. और मिर्ज़ा में बसता एक बाप जिसे नज़रअंदाज़ ही किया गया …उमराव से उनका रिश्ता जो मेरे मन ने पढ़ा …उनके ख़तों से निकली एक बिटिया रानी जिसमें मैंने ख़ुद को पाया और निःसंदेह नवाब जान… और ग़ालिब बीच 1857 के विद्रोह के एक ऐतिहासिक दृष्टि के साथ ..,वो गालियाँ जिनमें मैं पैदा हुई ..उन गलियों का नज़ारा

समर्पण - भानु सर और गौतम सर को दीदी भाई निशा दी ..,सब अपने …और मेरे मिर्ज़ा बाबा को

मेरी पुरानी दिल्ली की मेरी ताई चाचियों मेरे स्कूल , मेरे आँगन , दरो - दीवारों को ..मेरे शून्य और मेरे छात्रों को …अनी को जिसने हर लग मेरा साथ दिया …

आशीर्वाद मिला मेरे प्रिय नाटककार असग़र वजाहत जी से - मेरे गुरु भानु भारती जी से

रश्मि मैम और दीवान चंद बजेली जी से यामिनी मैम से सभी अपनों से इससे पहले कला वसुधा पत्रिका में कस्तूरबा के गांधी नाटक छप चुका है पुस्तक रूप में ये पहला ।

आप सब ज़रूर पढ़ें .. सबके लिए

नाटक अमेज़ोन पर उपलब्धपुरानी दिल्ली को चाहने वाले ज़रूर पढ़ें …पुरानी दिल्ली की धड़कन बजती है इसमें…




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