कथा कही एक जले पेड़ ने मूल कथा : किजिमा हाकिमे नाट्य रूपांतरण : भानु भारती
नाट्य जगत में अनेक ऐसे नाटकों की रचना होती रही है जो क्लासिक महत्व के रहें हैं और जिनका एक नहीं बल्कि अनेक बार अलग-अलग नाट्य निर्देशकों द्वारा मंचन होता रहा है l इस लेख में मैं जिस नाटक की बात आपसे साझा करने जा रही हूँ उसका नाम है कथा कही एक जले पेड़ ने l कथा कही एक जले पेड़ ने का मंचन भानु भारती के निर्देशन में १९८१ में हुआ था l उस समय के रंगमंच को ध्यान में रखते हुए यह अत्यंत प्रयोगशील नाटक था l इस नाटक में काम करने वाले अभिनेता रंगजगत की जानी-मानी हस्तियाँ रहें हैं l कमाल की बात यह है कि सन १९८१ के बाद यह नाटक हुआ तो परन्तु भारत में नहीं अपितु पकिस्तान में यहाँ सवाल यह उठता है कि अनेक संभावनाओं से युक्त होते हुए भी इस नाटक की ओर निर्देशकों का ध्यान क्यों नहीं गया तो एक ही बात समझ में आती है वो यह कि जब भी कोई निर्देशक नाट्य रचना की ओर आगे बढ़ता है तो अन्य निर्देशक उसे ये सोचकर हाथ में नहीं उठाते की उसमें उस निर्देशक की कोई ख़ास जीवन दृष्टि बिम्बित हो रही है जबकि ऐसा नहीं होता और कथा कही एक जले पेड़ के सन्दर्भ में तो बिलकुल ऐसा नहीं है l
कथा कही एक जले पेड़ ने नाटक शिल्प और क्राफ्ट की अनेक संभावनाएं लिए हुए एक बहुत ही महत्वपूर्ण नाटक है l इस नाटक का गठन अभिनेताओं और निर्देशकों को इस बात की पूरी छूट देता है कि वे इसके साथ प्रयोग ने नए पाठ रच सकें l इसके कथा-विन्यास एक प्रकार का लचीलापन है जो शिल्प के नए-नए रूपों को जन्म देने में सक्षम है l नाटक की प्रथम प्रस्तुति पर निर्देशक ने कुछ इस तरह कहा था – ‘’ यानी संभावनाएं हैं अभिनेताओं की कंठध्वनि और देह के उपयोग की , नए ध्वनिबंधों की रचना की तथा स्पेस के साथ प्रयोग की l यह सब कुछ ध्यान में रखते हुए हमने चाहा की शहरी अभिनेताओं और कलाकारों के साथ पारम्परिक कलाकारों और -नटों, काठशिल्पियों और कठपुतली वालों को रख कर विविध प्रतिभाओं को जोड़ा जाए l रचना का अंतिम रूप काफी हद तक शारीरिक व्यायामों, ध्वनि प्रयोगों और आशु कल्पनाओं से उभरा था l“
नाटक का मंचन ललित कला अकादमी के खुले प्रांगण में हुआ था l नाटक की कास्टिंग निर्देशक ने आसानी से नही की थी l इस नाटक में वानरों की रानी की मुख्य भूमिका में रहीं सिन्धु भाग्या जो वर्तमान में साहित्य कला परिषद् की उपसचिव भी हैं के अनुसार निर्देशक द्वारा वानरों की रानी के रूप में उनका न लिया जाना लगभग तय था l निर्देशक का कहना था कि उनमें उन्हें ऐसा कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था जो वानरों की रानी में हो परन्तु सिन्धु भाग्या सबके आने से लगभग दो घंटा पहले रिहर्सल स्पेस पर आतीं और खूब अभ्यास करतीं ...उन अभ्यासों में पेड़ों पर चढ़ना, उछालना-कूदना, कलाबाजियां लेना, अपने चेहरे को कई आकारों-प्रकारों में करना आदि शामिल था l इस सबका परिणाम ये होता कि जब तक निर्देशक और पूरी टीम रिहर्सल-स्पेस पर आती तब तक सिन्धु भाग्या मंच पर आने के लिए पूरी तह तैयार होतीं और इस तरह उनके लगातार अभ्यास ने उनसे वो चरित्र करवाया जो वो करना चाहती थीं l
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