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कथा कही एक जले पेड़ ने - Rama Yadav

Updated: Nov 9, 2023

कथा कही एक जले पेड़ ने नाटक भानु भारती द्वारा लिखित नाटक है जो किजिमा हजिमें की जापानी कहानी पर आधारित है इसका पहला मंचन दिल्ली के ललित कला अकादमी के खुले आँगन में 1981 में हुआ l निर्देशक यदि कोई नाटक लिखने के लिए प्रेरित हो तो समझ जाना चाहिए कि दबाव भयंकर है और उसी भयंकर दबाव की परिणति है ये रचना l कथा कही एक जले पेड़ ने समकालीन राजनीतिक-सामाजिक परिवेश पर टिप्पणी तो है ही साथ ही जीवन का क्रमवार अंकन भी यहाँ है l जीवन और जीवन से जुड़ी अनेक चाह, व्यक्ति का समाज से इतर अपना स्वतंत्र व्यक्तित्व और उसके इर्द-गिर्द बुनते सामाजिक सवाल और घेरे ...उन्हें तोड़ देने की चाह परन्तु बार-बार उनसे जूझना और टकराना यहाँ देखा जा सकता है l सूकीतोरिमें का चरित्र कम बोलता पर सबसे ज्यादा मुखर चरित्र इस नाटक में दिखायी देता है जो बार-बार सामाजिक घेरों को तोड़ने का प्रयास करता है परन्तु फिर-फिर स्वयं को उन्हं घेरों में कैद पाता है ये कैद जितनी सत्ता और कलाकार के द्वंद्व से उपजी है उतनी ही वयक्तिक लालसाओं की भी है जो एक व्यक्ति के जीवन में लगातार बनी रहती है l वानरों की रानी जो परम बुद्धिमती थी भी कुछ इसी तरह की मानवीय कमज़ोरियों से घिरी है जो मृत्यु पर किसी भी तरह विजय पा जाना चाहती है और उसके लिए किसी भी तरह की जुगत भिड़ा जाने से नहीं चूकती l दरअसल अगर नाटककार के शब्दों में ही कहूँ तो –‘’लेकिन अगर कभी आपको जिन्होंने इस कथा को देखा जाना है, किन्ही गुफाओं, कंदराओं की दीवारों पर, या पुराने सूखे पेड़ों की ठूंठों पर अजीबो-गरीब निशान या ख़रोंचे दिखाई दें, तो उन पर गौर कीजियेगा और उस वानर-चित्रकार सूकितोरिमें को याद कीजियेगा l वैसे, अगर आपको उसका नाम न भी याद रहे तो कोई बात नहीं, आप केवल उस अहसास की कल्पना भर कर पाएं जो उस चित्रकार के मन में था और जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता था, और उस अंतहीन संघर्ष के बारे में सोच पाएं, जो ज़िन्दगी और मौत की ताकतों के बीच लगातार चलता रहता है तो भी काफी होगा l ‘’




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