top of page
Search

मेघदूत पर विशेष

Updated: Oct 28, 2020

By Rama Yadav


मेघदूत का मंचन एक यज्ञ की तरह रहा l यज्ञ में सभी की हवि आमंत्रित होती हैं और मेघदूत भी एक ऐसा प्रयास रहा जिसमें सभी कलाकारों ने समान रूप से हवि अर्पित की और यह यज्ञ संपन्न हुआ l यहाँ मैं कुछ अपनी बात लेकर चलूंगी और वह यह कि भारतीय मनीषा की ओर जब - जब देखना हुआ है तब - तब भारतीय मन के सागर की गहरायी को देखने का मौका मिला है l यहाँ मैं अपनी बात को थोडा फर्स्ट पर्सन में लेकर जाना चाहूंगी तब जबकि यह मेरी शैली नहीं ..परन्तु मेघदूत के विश्लेषण के लिए यह आवश्यक हो जाता है l मेघदूत मैं कभी न कर पाती यदि संस्कृत शब्द पैदा होने के साथ से ही मेरे कानों में पड़ने न शुरू हुए होते l ये एक दिन की बात नहीं ..सुबह तीन बजे से ही गायन के शब्द मेरे कानों में पड़ते और उनमें संस्कृत का गायन भी होता ..जिसमें वेदों , उपनिषदों का भी कुछ होता ..लौकिक संस्कृत भी होती और फिर कुछृ भक्ति और श्रृंगार भी उस गायन में हिलोरे लेता l नित्य प्रति इस गायन में जो शब्द गूंजते वो अपने से होने लगे ..उनसे मन बंधने लगा और तब लगा कि यह भाषा जिसे संस्कृत कहते हैं बहुत मीठी हैl कहना ज़रूरी है कि पिता के नित्य के गायन ने ही मुझे मेघदूत करने को प्रेरित किया वह भी संस्कृत में l यह श्रुति परम्परा मुझे विरासत में मिली और इतना सब सुनकर मुझे याद हो गया अन्यथा संस्कृत साहित्य इतना विशाल है कि उसे पढ़ने बैठें तो पूरा जीवन ही कम पड़ जाए l यह सुनकर ही जाना कि संस्कृत साहित्य में जो भूमा का दर्शन है वह कितान विशाल है उसमें अपने में सबको समेट लेने की कितनी व्यापक दृष्टि है ..वह व्यष्टि से समष्टि की यात्रा है l व्यष्टि से समष्टि की इसी यात्रा ने मुझे मेघदूत करने के लिए बाधित किया l यही समष्टि की यात्रा यही भूमा का सुख - व्यक्ति सुख से ऊपर उठाकर आज के युग के लिए परम अनिवार्य है l

मेघदूत एक श्रृंगार काव्य ..विरह काव्य के रूप में उभर कर सामने आता है परन्तु मेघदूत केवल एक श्रृंगार काव्य या यक्ष का विरह गान नहीं है , बल्कि यह यक्ष की वह यात्रा है जो उसे व्यष्टि से समष्टि की ओर ले जाता है l मेघों को ...जिनकी कोई जाति नहीं है धर्म नहीं है यक्ष अपना प्रिय सखा कहकर संबोधित करता है वो सखा जो उसकी प्रिय तक उसका सन्देश पहुंचाएगा l यहाँ यक्ष का मन केवल और केवल अपनी प्रिय में रमा है यहीं यक्ष का चरित्र राम से भी घुल - मिल जाता है जहाँ राम अपनी प्रिया के वियोग में कहते हैं - घन - घमंड नभ गर्जत घोरा l प्रिया विहीन डरपत मन मोरा l प्रेम की यह एकनिष्ठता यक्ष और राम के चरित को घुला - मिला देती है और धीरे धीरे जब यक्ष मेघों के साथ पूरे देश का भ्रमण करता है तो इस देश का खेतीहर चरित और मेघों की उदारता के साथ उसका परिचय बढ़ता जाता है ..यक्ष पग - पग पर धरती के दानवीर रूप के दर्शन करता है , प्रकृति का भूमा रूप उसके सामने अवतरित होता है और वह अपने व्यक्तिक दुःख से ऊपर उठकर अपने पर - उपकारी मित्र बादल को कहता है कि मेरा यह काम अनुचित हो तब भी तुम कर देना अर्थात मेरा संदेसा मेरी प्रिय मेरी पत्नी को दे आना पर हे प्रिय बंधू तुम अपनी प्रियतमा बिजली से कभी अलग न हो यह विरह तुम्हे कभी झेलने को न मिले यही मेरा शुभाशीष है l इस तरह का उदार मन विभेद में विश्वास कभी नहीं कर सकता l मेघदूत डॉ से एक होने की कथा है ..अद्वैत जहाँ यक्ष का मन प्रकृति में ही रमा है और जो प्रक्सृती का चितेरा है वो विबेद नहीं चाहता l

यही वह बिन्दु है जहाँ भारतीय दृष्टि , यक्ष की दृष्टि और कालिदास की दृष्टि आपस में घुल - मिल जाती है और यही वह बिन्दु है जहाँ दर्शक का मन यक्ष के मन से साधारणीकृत हो जाता है जो मन यक्ष का है वही मन कालिदास है और यही वह वजह है जिसके कारण मेघदूत किया गया l

शून्य थियेटर समूह मेघदूत को संस्कृत में उठाता है साथ ही हिन्दी में भी l मेरे विचार से यह अब तक का एक अत्यंत अनूठा प्रयास है l महाकवि कालिदास के नाटकों का हिन्दी अनुवाद तो उठाया गया है परन्तु काव्य को संस्कृत में इस तरह से अभी तक मेरी दृष्टि में नहीं उठाया गया या फिर इक्का - दुक्का उदहारण हो तो कहा नहीं जा सकता l

भारत में लगातार ..बारम्बार विदेशी नाटक धडल्ले से हो रहे हैं और होने भी चाहियें मुझे इनकार नहीं ..परन्तू कालिदास , भास , भवभूति क्यों पीछे छूट जाते हैं यह समझ नहीं आता ..इस बात को समझना बहुत ज़रूरी है l भारतीय दृष्टि जो सबमें एक अर्थात अद्वैत को मानती है ...अद्वैत अर्थात दो नहीं अर्थात भेद नहीं तो उस दृष्टि को प्रसारित करने वाला साहित्य उसी तरह से सामने आना बहुत आवश्यक है l भाषा कठिन है लेकिन उसका लक्ष्य महान है उसके आदर्श उच्च है और उसे साथ लेकर चलाना ही होगा l मेघदूत का निर्देशन एक अत्यंत विराट कार्य था जिसका होना संभव नहीं था अगर टीम का साथ न होता l मंच पर मेघदूत एक साथ अनेक तरह से उभरा है यह केवल एक नाटक नहीं वरन इसमें भारतीय नाट्यशास्त्र की सर्वांगीण द्रष्टि को मंच पर घटित होते हुए देखा जा सकता है l इस नाटक के मंचन में जहाँ मेघदूत का वाचन हो रहा है वहीँ समानांतर रूप से मेघदूत का आंगिक , वाचिक , सात्विक , आहार्य अभिनय भी हो रहा है l एक साथ अनेक कार्यव्यापार मंच पर घटित हो रहे थे l संस्कृत के कथा वाचन का भार यक्ष की भूमिका कर रहे मयंक गुप्ता , यक्षिणी की भूमिका कर रहीं रमा यादव और मेघ की भूमिका में अवतरित आदित्य पर था और वासुदेव शरण अग्रवाल द्वारा किये गए हिंदी अनुवाद का वाचिक अभिनय सुरजीत कर रहे थे l इसके अतिरिक्त इस सब पर समवेत बिम्बों का निर्माण मंच पर हो रहा था l दर्शक जो सुन रहा था उसे बिम्बों के माध्यम से देख भी रहा था l मेघदूत क्योंकि काव्य है इसलिए इसका मंचन काव्य नाटक के रूप में ही हुआ है l

मंच पर यक्ष की भूमिका में मयंक गुप्ता , यक्षिणी की भूमिका में रमा यादव , प्रमुख वाचन स्वरों में सुरजीत यादव इसके अतिरिक्ति संस्कृत वाचन में मयंक गुप्ता , आदित्य राज चौधरी , रमा यादव की विशेष भूमिका रही , यक्षपति की भूमिका में अनंत रहे l इसके अतिरिक्त मेघों की प्रमुख भूमिकाओं में - श्वेता , अजय , सनी , अनत अरबाज़ कुरैशी , आदित्य , वैभव , पुनीत , मोईन , सागर रहे l मेघों से गहरे यक्ष से मंच भास्वर उठा था l मेघों के ये टुडे मंच पर इतना सजीव और उर्जावान चित्र बिम्ब बनाते दीख रहे थे जिसके लिए शब्द कम हैं l

नाटक में नृत्य का संयोजन और निर्देशन रमा यादव का रहा और टीम ने नृत्य को बहुत ही खूबसूरती के साथ निभाया जिसमें अरबाज़ कुरैशी ने जो शिव तांडव किया वह अविस्मरनीय रहेगा l नाटक में संगीत का संयोजन उज्जवल राज पाठक का रहा और प्रकाश व्यवस्था अतुल मिश्रा की रही l दरअसल मेघदूत बिना सात्विक अभिनय के कुछ भी नहीं था इसलिए यह कहना होगा कि शून्य की टीम ने इस सत्व को बहुत ही बेहतरीन तरीके से मंच पर घटित किया जिसमें सुरजीत और मयंक गुप्ता का बेहतरीन तालमेल रहा l मंच पर कथा बांचते सुरजीत और मयंक ऐसे घुल - मिल गए थे कि दर्शक उन्हें चाहकर भी अलग नहीं कर सकते थे l यक्ष के विराटत्व को मयंक ने अपने अभिनय और संस्कृत के पदों द्वारा तथा सुरजीत ने अपनी वाणी द्वारा बहुत ही बेहतरीन तरीके से उभारा l टीम को सहयोग करने वाले मेघ कब गणिकाएँ बन जाते , कब खेती करने वाले किसान और कब मोर के पंख और कब भारत की नदियाँ पता ही न चलता l इस दृष्टि से मेघदूत का निर्देशन एक अत्यंत महत्र्व्पूर्ण अनुभव रहा जो जीवन का एक महत्व[पूर्ण हिसा हो गया है l



40 views0 comments

Comments


bottom of page