By Rama Yadav
शून्य से जुड़े सभी दर्शकों , सभी पाठकों और सभी श्रोताओं को नमस्कार -
थियेटर एक एस कला माध्यम है जिसके बिना मैं कम से कम कभी नहीं रही l थियेटर के बिना रहना संभव भी नहीं ..चाहे इस के देखने वाले हों या करने वाले .. आज आपसे अभिज्ञान शाकुंतलम पर कुछ चर्चा करने का मन l हमारे पास हिन्दी में इस महान नाटक के तीन सब्स्कर्ण उपलब्ध हैं ..एक रजा लक्ष्मण सिंह द्वारा अनुदित , दूसरा मोहन राकेश द्वारा और तीसरा विराज द्वारा l रजा लक्ष्मण सिंह ने यह ट्रांसलेशन जिन परिस्थितियों में किया वह बड़ी ही विकट स्थितियां थीं l देश पर अंग्रेजों का शासन ..लिखने पढने की कोई सामग्री नहीं थी ..फिर भी अंग्रेजों की मदद से पढने की सामग्री तैयार की जा रही थी और तभी शाकुंतलम का अनुवाद हुआ रजा लक्ष्मण सिंह द्वारा l
उसके बाद जो सबसे महत्वपूर्ण अनुवाद है वो है मोहन राकेश का ..मोहन राकेश जैसे कालिदास की आत्मा तक उतर गए और वो अनुवाद भीतर तक आंदोलित करता है कुछ ऐसा ही अनुवाद है विराज द्वारा किया गया अनुवाद l पर आज जो बात मैं आपसे करना चाहती हूँ वो कालिदास की नाट्य आत्मा की है l कालिदास को पढ़कर लगता है कि प्रकृति उनके रोम रोम में बसी है l शाकुंतलम में जिस तरह से ऋषि कण्व के शिष्य वनचारी पशुओं की देखभाल करते हैं और दुष्यंत से निवेदन करते हैं कि वे शिकार करके वन की शान्ति भंग न करें l पता चलता है कि प्रकृति की सुरक्षा को लेकर कालिदास जैसे महाकवि अत्यंत चिंतित थे ...दरबार में रहकर इस तरह से अपनी बात को दरबारियों तक पहुंचाना कोई आसान काम नहीं था l यूँ भी कालिदास के सन्दर्भ में कहा जाता है कि दरबार में रहते हुए भी वह काव्य अपने मनोकूल ही लिखते थे , कोई भी दबाव उन पर ये दबाव नहीं डाल पाया कि वो कुछ ऐसा लिखें की वो दरबार के पक्ष में हो ...कालिदास ने हमेशा ही रचना अपने मन और अपनी स्वतन्त्रता से की l शाकुंतलम का सबसे मार्मिक पक्ष है रिशी कण्व का अपनी पुत्री को विदा करना l कालिदास ने एक पिता की सम्पूर्ण आत्मा को उसमें भर दिया l यधपि ऋषि कण्व ने शकुन्तला को सिर्फ पाला था क्योंकि वो मूलत अप्सरा मेनका और विश्वामित्र की पुत्री थी ...पर अपने द्वारा पाली गयी कन्या कण्व ऋषि को खुद से भी अधिक प्रिय थी l कण्व का अपनी पुत्री की विदाई पर जो जो कथन हैं यदी आप उसे पढेंगें तो आपकी आँखें ज़रूर भीग जायेंगी l कालिदास ने एक पुरुष में यहाँ माँ से भी अधिक ममता उंडेल दी है ...एक पिता का पुत्री के लिए स्नेह और ममता को अनुभव करना है तो कालिदास का शाकुंतलम ज़रूर पढ़ना होगा l साथ ही प्रकृति का आदर तो यहाँ कूट - कूट कर भरा है l प्रकृति से ये प्रेम और मानव मन की गूढ़ पहचान के कारण ही कालिदास विश्व के श्रेष्ठ नाटककार हैं l सभी अपना ख्याल रखें शून्य निरंतर आपके साथ नमस्कार
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