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मेरी नज़र में हानूश : सनी कबीर


“हानूश" भीष्म साहनी द्वारा लिखित एक महानतम रचना है ॥हानूश सिर्फ एक नाटक ही नहीं बल्कि जीवन का वह यथार्थ है जिसकी शायद हम कभी कल्पना भी नहीं करते। जब भी हम किसी कलाकार या उसकी रचना को देखते हैं तो हमें सिर्फ़ उस समय केवल उसका यश, शोहरत, लोकप्रियता उसकी प्रसिद्धि ही दिखाई पड़ती है परंतु उसके पीछे के संघर्ष से हम अपरिचित रहते हैं। हानूश एक ऐसा ही कारीगर है जो दस्तकार है कुफ़्लसाज़ है ताले बनाने का काम करता है। जिसने अपने मुल्क में पहली घड़ी बनाने का ख़्वाब देखा और उसे बनाने में जुट जाता है। नाटक के लेखक भीष्म साहनी द्वारा इस नाटक में हानूश के जीवन के हरेक पड़ाव को बहुत ही तफ़सील के साथ दर्शाया गया है। इसके सभी पात्र बहुत ही रोचक और रोमांच से भरे हैं। नाटक कई मायनों में अपनी ओर आकर्षित करता है तथा सोचने पर विवश करता है। . कई बार लगता है स्वयं भीष्म साहनी लोहार के माध्यम से संवाद बोल रहे हो। शायद यह भीष्म साहनी की चिंता भी रही होगी जिसे उन्होंने नाटक के माध्यम से उजागर भी किया है। यही कारण है की नाटक में अलग-अलग वर्गो और उनके रोजगार को भी दर्शाया गया है। किस तरह से एक समाज से कोई कला विलुप्त होती है जो आज के समय से भी उतना ही इत्तेफ़ाक रखती है जितना की पहले। हाथ के कारीगर दस्तकार लोग जो रोजगार के कारण विलुप्त होते जा रहे हैं आज दिखाई नहीं देते जिनकी जगह अब मशीनों ने ले . नाटक में हमें देखने मिलता है जिस तरह हानूश और उसका परिवार निम्न वर्गीय परिवार है तथा एक निम्न वर्गीय परिवार में किस-किस तरह की परेशानियां आती जाती रहती हैं उन्हें किन दिक़्क़तों का सामना करना पड़ता है। अलग-अलग दृश्यों में परिस्थितियों द्वारा दिखाया गया है। इसी प्रकार एक पात्र है लोहार जो लोहारी का काम करता है। हानूश को उसकी ज़रूरत के अनुसार पुर्जे बना-बनाकर उसके सपने को पूरा करने में उसकी सहायता करता है। दरअसल वो हानूश में अपने आपको देखता है लगता हो जैसे जो काम कभी शायद लोहार करना चाहता हो परंतु समय और उम्र की मार से अब वह मजबूर है। वो हानूश में वही लगन वही मेहनत और जोश देखता है जो कभी लोहार में रही होगी। यही कारण है लोहार का हानूश पर अटूट विश्वाश है। . नाटक में हमें देखने मिलता है जिस तरह हानूश और उसका परिवार निम्न वर्गीय परिवार है तथा एक निम्न वर्गीय परिवार में किस-किस तरह की परेशानियां आती जाती रहती हैं उन्हें किन दिक़्क़तों का सामना करना पड़ता है। अलग-अलग दृश्यों में परिस्थितियों द्वारा दिखाया गया है। इसी प्रकार एक पात्र है लोहार जो लोहारी का काम करता है। हानूश को उसकी ज़रूरत के अनुसार पुर्जे बना-बनाकर उसके सपने को पूरा करने में उसकी सहायता करता है। दरअसल वो हानूश में अपने आपको देखता है लगता हो जैसे जो काम कभी शायद लोहार करना चाहता हो परंतु समय और उम्र की मार से अब वह मजबूर है। वो हानूश में वही लगन वही मेहनत और जोश देखता है जो कभी लोहार में रही होगी। यही कारण है लोहार का हानूश पर अटूट विश्वाश है। इसी कड़ी में जेकब जो की बाद में हानूश का शागिर्द बन अंत में घड़ी का भेद लेकर चला जाता है एक अहम भूमिका में दिखाई पड़ता है। हानूश की पत्नी कात्या बहुत महत्वपूर्ण भूमिका में दिखाई देती है जो एकमात्र हानूश का सहारा बनती है जहाँ एक तरफ वो घर की पूरी जिम्मेदारीयों का बोझ लिए बाज़ार में ताले बेचने का काम भी करती है साथ ही साथ घर की तमाम दिक़्क़तों से भी जूझती है और हानूश को उसके काम के प्रति समय दर समय प्रेरित करती रहती है उसमें उत्साह भरती रहती है। जो की स्नेह और प्रेम का असल मायनों में एक सही उदाहरण है। . इसी तरह पादरी हानूश के बड़े भाई की भूमिका में अपनी सारी जिम्मेदारियां बखूबी निभाते दिखाई पड़ते हैं बाहरी समाज और पारिवारिक संघर्ष के बीच का द्वंद इस पात्र के जरिये देखा जा सकता है। मित्रता की मिसाल कायम करते हुए एमिल ने एक अहम योगदान दिया नाटक में जो हर दुख सुख में हानूश और उसके परिवार के लिए खड़ा रहता है। जितना घनिष्ठ मित्र वो हानूश का है उतना ही कात्या का भी जो एक अच्छा उदाहरण पेश करता है और वाकई में सराहनीय है। वहीं दूसरी ओर इस नाटक में देखने को मिलता है कि किस प्रकार समाज के उच्चतम श्रेणि में आने वाले कुछ लालची लोग व्यापारी सत्ता में बैठे लोग अपना स्वार्थ पूरा करने के लिये किसी भी हद तक जा सकते है। सत्ता कितनी क्रूर हो सकती है कला और कलाकार कैसे इन सबके बीच दबा कुचला जाता है और किसी को उससे मतलब नहीं रहता जो अपने आप में एक अजीब विडंबना है। . इस नाटक का निर्देशन एवं हमारा मार्गदर्शन किया है डॉ रमा यादव मैम ने नाटक में जो कात्या की महत्वपूर्ण भूमिका में भी दिखाई देती हैं। जिन्होंने इस नाटक को केवल एक नाटक की तरह ही नहीं देखा बल्कि एक अविष्कार एक क्रांति किसी खोज की तरह उठाया इसमें संभावनाओं को तलाशा और एक किरण हम सब के अंदर जलाई इस उम्मीद के साथ अच्छी सोच के माध्यम से यह ज्वाला हम सब में जलती रहनी चाहिए जो मंच पर आपको स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है। पात्रों के हरेक शारीरिक चाल-ढाल, हाव-भाव पर खासतौर पर काम किया गया है फिर चाहे हानूश की एक अनूठी चाल हो जो उसकी मासूमियत और उसके काम करने की एक तात्कालिकता एक प्रकार की तीव्र इच्छा को दर्शाता है। लोहार के शारीरिक चाल-ढाल तथा वाचिक पर बहुत ही बारीकी से ध्यान दिया गया है। जब हम कोई नाटक खेलते हैं तो उसके किरदार मंच के साथ-साथ आपके जीवन में भी एक जगह बना लेते हैं एक प्रकार का आदान-प्रदान चलता रहता है ऐसा हर किसी के साथ हो ये ज़रूरी नहीं ऐसा तभी मुमकिन है जब आप नाटक या उससे जुड़े किरदार के प्रति समर्पित हो ये बहुत ही संजीदा मामला है जो एक प्रकार की गंभीरता मांगता है तभी आप उस किरदार को खोजते हैं ख़ुद में अपने से बाहर-अंदर निरीक्षण करते है की उसमें और हममें कितनी एवं क्या-क्या समानताएं और असमानता हैं तभी आप उसे बुनना शुरू करते है . किरदारों की खासियत है की कुछ हँसाते हैं कुछ रुलाते है कुछ अचंभित कर जाते हैं और कुछ आपको जीवन के अच्छी शिक्षा दे जाते हैं बहुत कुछ सिखा जाते है। वैसे ही एक किरदार लोहार हैं एक कलाकार होने के नाते मैंने लोहार से काफी कुछ सिखा है कैसे आपकी छोटी छोटी कोशिश किसी के जीवन में एक उम्मीद की किरण जगा सकती है उसमें एक ताकत ऊर्जा भर सकती है . फिर चाहे कितने ही दिक्कत परेशानी आये हमें संघर्ष करते रहना चाहिए अंत तक समय और जीवन के चक्र के साथ-साथ चलते रहना है बिना रुके बिना हार माने । सभी पात्रों और कलाकारों पर महत्वपूर्ण रूप से सभी पर बहुत ही बारीकी से काम किया गया है। निर्देशक द्वारा सभी कलाकारों और पात्रों पर अभिनय के सभी क्रियाकलापों आंगिक, वाचिक, सातविक एवं आहार्य पर कड़ी मेहनत से काम किया गया है। जिसे मंच पर हमेशा सराहया जाता है। शून्य नाट्य समूह हमेशा से ऐसे प्रयास करता आया है जिसका मकसद सिर्फ नाटक करने तक ही सीमित नहीं नाटक के माध्यम से हम समाज को क्या दे रहे हैं या क्या दे सकते हैं आने वाली पीढियां नाटक से क्या सीखती है हमें नाटक क्यों करना चाहिए सब सिखाना भी है और इसी प्रयास के साथ शून्य नाट्य समूह आगे बढ़ रहा है।



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