शून्य के एक कलाकार मोहनीश की कलम से
हानूश कहानी के रूप में एक क्रांति का मुजस्सिम है। असाधारण की खोज में एक साधारण व्यक्ति का किस्सा है। पहली घड़ी बनाने की उसकी अथक खोज के बाद जो होता है वह पूर्ण अस्तव्यस्तता है। उसका अंतिम आविष्कार उसके लिए अभिशाप साबित होता है जब यह सत्ता में बैठे लोगों के लालच को चिंगारी देता है। नाटक का विषय कई संघर्षों को रेखांकित करता है।
शुरुआत में गुज़र बसर कर रहे कुफलसाज़ो का एक विशिष्ट परिवार नज़र आता है। एक आविष्कार को ईजाद करने की ललक पारिवारिक मतभेद का कारण बनती है। कहानी में हानूश के साथ उसके परिजनों के अपने संघर्ष भी उजागर होते है। उसकी पत्नी जो कि परिवार की एकमात्र रोटी कमाने वाली है। तमाम बाधाओं के बावजूद ताले बनाने और बेचने की कोशिश करती है। बड़े भाई जो उसे परिजनों का समर्थन करने के लिए परामर्श देते हैं। उन्हें पिता की तरह चित्रित किया जा सकता है जो अपनी संतान को एक अवास्तविक सपने के पीछे भटकता नहीं देखना चाहती। एक बेटी जो न केवल अपनी माँ का हाथ बटाती है बल्कि अपने पिता की महत्वाकांक्षा कि साक्षी भी है। बूढा लोहार एकमात्र व्यक्ति है जो हानूश में दृढ़ता से विश्वास करता है। जैसे एक दस्तकार दूसरे दस्तकार के प्रति करता है । हानूश का दोस्त एमिल जो समय-समय पर उसके परिवार को संरक्षण देता है। तमाम मुश्किलातों के बावजूद उसके साथ सहानुभूति रखता है। अनचाहा अथिति जेकब जो काम की तलाश में आता है और बेइरादे हानूश का प्रशिक्षु बन जाता है। जेकब एक अहम् किरदार है जो घड़ी के रहस्य को जीवित रखने में सहायक है।
हानूश द्वारा बनाई मुल्क कि पहली घडी व्यापारियों, पादरियों और राजा में रस्साकशी शुरू करती है। इन सभी के लिए घडी महज सत्ता का चिन्ह बनकर रह जाती है। कहानी एक आश्चर्यजनक मोड़ लेती है जब हानूश इस शक्ति-संघर्ष के बीच फंस जाता है और राजा के आदेश पर अंधा बना दिया जाता है। आज के युग में भी यह प्रासंगिक है। आज भी उच्च वर्ग के दमन से शिल्पकार,दस्तकार और कारीगर भारग्रस्त हैं। आज भी दस्तकारी को भुनाया जाता है। यह त्रासदी नाटक के मुख्य किरदारों में बखूबी झलकती है। अंततः प्रत्येक किरदार हानूश के संघर्ष में शामिल हो जाता है और यह त्रासदी क्रांति में तब्दील हो जाती है।
नाटक के अंतिम दृश्य में हानूश कि संघर्ष रुपी मशाल सभी पात्रों के योगदान से दहकती है जो उनके साथ दर्शको को भी सम्मिलित करती है।
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